दो बच्चों की मां ने 22 महीनों में 300.17 लीटर स्तन दूध दान कर प्रीटर्म यानि समय से पहले जन्मे और गंभीर रूप से बीमार हजारों नवजात शिशुओं की जान बचाई।
त्रिची: तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले के कट्टूर की 33 वर्षीय गृहिणी सेल्वा बृंदा ने अपने निस्वार्थ और मानवीय कार्य से पूरे देश में एक नई मिसाल कायम की है।
बृंदा, जो दो बच्चों की मां हैं, ने बीते 22 महीनों में 300.17 लीटर स्तन दूध दान किया, जिससे हजारों समय से पहले जन्मे और गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं को जीवनदान मिला। उनके इस सेवा कार्य को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज किया गया है।

NICU से शुरू हुआ सफर
अप्रैल 2023 में, जब उनकी नवजात बेटी को नीओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में भर्ती किया गया, तब बृंदा ने पहली बार देखा कि समय से पहले जन्मे बच्चों के लिए स्तन दूध कितना जरूरी होता है। उनकी दूध उत्पादन क्षमता बेटी की ज़रूरतों से अधिक थी, इसलिए उन्होंने अतिरिक्त दूध दान करने का फैसला किया।
“आसान नहीं था, लेकिन मैंने हार नहीं मानी”
बृंदा कहती हैं, “शुरुआत में मुश्किलें थीं। मेरा वजन कम हो गया और लोग मुझे शक की नजर से देखने लगे। लेकिन जब मुझे पता चला कि दूध पंप करने से कैलोरी बर्न होती है और यह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह नहीं है, तब मैंने दूध देना जारी रखा। फिर धीरे-धीरे, मैं इस काम से भावनात्मक रूप से जुड़ गई, और लगभग दो साल तक लगातार दूध दान करती रही।
नवजातों के लिए जीवनदायी साबित हुआ दान
2023–24 में तिरुचिरापल्ली के महात्मा गांधी मेमोरियल गवर्नमेंट हॉस्पिटल के मिल्क बैंक में जितना दूध एकत्र हुआ, उसमें से लगभग आधा दूध अकेले बृंदा ने दान किया। एक नवजात को एक बार में लगभग 20–40 मिली दूध, दिन में 10–12 बार ज़रूरत होती है। ऐसे में बृंदा का योगदान हजारों नवजातों के लिए जीवनदायी साबित हुआ।
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सामाजिक वर्जनाएं तोड़ने की जरूरत
बृंदा को इस पूरे सफर में अपने परिवार का पूरा सहयोग मिला। उन्होंने कहा, “एक छोटे से दान से भी किसी ज़रूरतमंद बच्चे को ज़रूरी पोषण मिल सकता है। सिर्फ यह सोच लेना ही किसी को इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकता है।” उन्होंने समाज से स्तन दूध दान को लेकर बनी चुप्पी और सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने की अपील की। “जब लोगों को समझ आता है कि यह जान बचाने के लिए है, तब झिझक अपने आप खत्म हो जाती है।”
अमृतम फाउंडेशन की भूमिका
बृंदा की इस प्रेरणादायक यात्रा में तमिलनाडु आधारित एनजीओ अमृतम फाउंडेशन ने भी अहम भूमिका निभाई। यह संस्था दाताओं से दूध एकत्रित कर, उसे जांचती, पाश्चराइज करती और फिर अस्पतालों के निओनेटल इंटेंसिव केयर सेंटर्स तक पहुंचाती है।
फाउंडेशन की सहायता से बृंदा का दूध सुरक्षित रूप से उन नवजातों तक पहुंच सका जिन्हें उसकी सबसे अधिक जरूरत थी। संस्था महिलाओं को सुरक्षित और प्रभावी ढंग से दूध दान करने की प्रक्रिया समझाकर उनकी मदद करती है।
बृंदा की कहानी सिर्फ मातृत्व की नहीं, बल्कि सहानुभूति, दृढ़ता और सामाजिक जागरूकता की भी कहानी है — एक ऐसा संदेश जिसे पूरे देश में सुना जाना चाहिए।