जन्म के सिर्फ 14 दिन बाद डॉक्टरों ने लूका का लिवर बायोप्सी किया और यह पुष्टि की कि उसे Biliary Atresia नामक दुर्लभ बीमारी है। इसमें पित्त नलिकाएँ अवरुद्ध या अविकसित हो जाती हैं, जिससे पित्त बाहर नहीं निकल पाता।
यूटा (अमेरिका): कहते हैं माता-पिता अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं। 30 वर्षीय ऐशलिन मॉस (Ashlynn Moss), साल्ट लेक सिटी, यूटा की रहने वाली माँ ने इस कहावत को सच कर दिखाया। अपने नवजात बेटे लूका (Luka) को जिगर (Liver) की विफलता से बचाने के लिए उन्होंने खुद बड़ी सर्जरी करवाई और अपने लिवर का हिस्सा दान कर दिया।
बीमारी का पता चलते ही बढ़ी मुश्किलें
ऐशलिन और उनके पति ने 13 नवंबर 2023 को बेटे लूका को जन्म दिया, लेकिन जन्म के कुछ ही दिनों बाद जब बच्चे को गंभीर पीलिया हो गया तो खुशियाँ डर में बदल गईं। फोटोथेरेपी कराने के बावजूद लूका की हालत बिगड़ती गई। जन्म के सिर्फ 14 दिन बाद डॉक्टरों ने उसका लिवर बायोप्सी किया और यह पुष्टि की कि उसे बिलियरी एट्रेसिया (Biliary Atresia) नामक दुर्लभ बीमारी है। इसमें पित्त नलिकाएँ अवरुद्ध या अविकसित हो जाती हैं, जिससे पित्त बाहर नहीं निकल पाता।
लिवर ट्रांसप्लांट ही आखिरी उम्मीद
एकमात्र तात्कालिक विकल्प कसाई प्रक्रिया थी, जिसमें सर्जनों ने लीवर के बाहर अवरुद्ध पित्त नलिकाओं को हटाकर लुका की आंत के एक हिस्से का उपयोग करके एक नया मार्ग बनाया। यह सर्जरी तब की गई जब वह केवल कुछ हफ़्ते का था, जिसका उद्देश्य लिवर की विफलता को टालना था। दुर्भाग्य से, अप्रैल 2024 तक यह स्पष्ट हो गया कि यह प्रक्रिया विफल हो गई थी। लुका को आधिकारिक तौर पर लिवर ट्रांसप्लांट की सूची में डाल दिया गया।
एश्लिन और उनके पति ने तुरंत डोनर बनने के लिए आवेदन किया। जून में, उन्हें सूचना मिली कि कंसास से लिवर उपलब्ध है। लेकिन उनकी राहत जल्द ही निराशा में बदल गई जब उड़ान में देरी के कारण अंग ख़राब हो गया। ऐशलिन याद करती हैं – “उस कमरे का सन्नाटा दुनिया भर में सुना जा सकता था।”
जब लूका केवल छह महीने का था, उसकी हालत एंड-स्टेज लिवर फेल्योर तक पहुँच गई। उसका शरीर सूज गया था और त्वचा व आँखें पीली हो गई थीं। समय बीतता जा रहा था—तभी डॉक्टरों ने पाया कि ऐशलिन परफेक्ट डोनर मैच हैं।
माँ का त्याग, बेटे की नई ज़िंदगी
26 जून 2024 को ऐशलिन ने छह घंटे की सर्जरी करवाई। डॉक्टरों ने उनके बाएँ लिवर का 22% हिस्सा निकाला और सीधे बच्चों के अस्पताल पहुँचाया गया, जहाँ लूका का आठ घंटे लंबा ऑपरेशन हुआ।
सर्जरी के बाद ऐशलिन का स्वास्थ्य कठिन दौर से गुज़रा, लेकिन उन्होंने कभी अपने बेटे को लेकर उम्मीद नहीं छोड़ी। वह कहती हैं—”मैं कैसा महसूस कर रही थी, इससे फर्क नहीं पड़ता था। बस यह ज़रूरी था कि लूका सुरक्षित रहे।” तीन दिन में वह अस्पताल से छुट्टी पाकर बेटे से मिलीं।
लूका की नई शुरुआत
आज लूका स्वस्थ है। वह रोज़ एंटी-रिजेक्शन दवा लेता है और हर महीने उसके लिवर फंक्शन की जांच होती है। यदि कोई और जटिलता नहीं आई तो भविष्य में उसे किसी और सर्जरी की ज़रूरत नहीं होगी।
सिर्फ 22 महीने की उम्र में लूका ने जितना सहा है, उतना कई लोग पूरी ज़िंदगी में नहीं सहते है। उसकी दृढ़ता ने उसके आस-पास के सभी लोगों को, खासकर उसकी माँ को, प्रेरित किया है। ऐशलिन कहती हैं—”अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं यह सब फिर से करने के लिए तैयार हूँ।”
यह सिर्फ़ एक चिकित्सीय चमत्कार की कहानी नहीं, बल्कि उस माँ के अथाह प्रेम की मिसाल है, जिसने सचमुच अपने शरीर का हिस्सा देकर अपने बेटे को ज़िंदगी दी।