अस्पताल ने 80 बच्चों के लिए दवा का अनुरोध किया था, लेकिन केवल 40 मरीज ही आजीवन मुफ्त आपूर्ति के लिए पात्रता मानदंडों को पूरा कर पाए।
सोमवार सुबह 14 वर्षीय भाविन खरे और उनकी मां तनुजा के लिए उम्मीद की एक नई किरण लेकर आई। ठाणे के मुरबाड से लगभग 100 किलोमीटर दूर मुंबई के परेल स्थित वाडिया अस्पताल की ओर रवाना होते समय उनके मन में एक नई आशा थी। भाविन को अमेरिका में बनी एक ऐसी दवा मिलने वाली थी, जिसकी सालभर की खुराक की कीमत 1 करोड़ रुपये से भी अधिक है। यह दवा एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis) के गंभीर लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है, जिससे वह जन्म से जूझ रहा है।
भाविन की मां तनुजा का कहना है, “भाविन का पूरा जीवन संघर्ष में बीता है। उसे लगातार खांसी और सीने में संक्रमण रहता है, जिससे वह आधे समय स्कूल भी नहीं जा पाता है।” उन्हें उम्मीद है कि अब उनके बेटे को पहली बार “सामान्य जीवन” जीने का मौका मिलेगा।
भाविन उन पांच बच्चों में शामिल है जिन्हें सोमवार को वाडिया अस्पताल में Trikafta नामक दवा की तीन महीने की खुराक दी गई। यह दवा अमेरिका की Vertex Pharmaceuticals कंपनी द्वारा बनाई गई है और इसे सिस्टिक फाइब्रोसिस के इलाज में ब्रेकथ्रू ड्रग माना जाता है। आने वाले समय में 35 और बच्चों को यह दवा दिए जाने की योजना है।
अस्पताल के पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. परमार्थ चंदाने ने बताया कि हमने कंपनी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर साइन किया है। कंपनी ने मानवीय आधार पर 40 बच्चों को Trikafta की जीवनभर की मुफ्त आपूर्ति देने पर सहमति जताई है।” कुल मिलाकर, अस्पताल ने 80 बच्चों के लिए दवा का अनुरोध किया था, लेकिन छह साल से अधिक उम्र के केवल 40 मरीज ही आजीवन मुफ्त आपूर्ति के लिए पात्रता मानदंडों को पूरा कर पाए।
क्या है Cystic Fibrosis?
Cystic fibrosis एक आनुवंशिक बीमारी है जो मुख्यतः फेफड़ों और अग्न्याशय को प्रभावित करती है। इसमें शरीर में गाढ़ा और चिपचिपा बलगम बनता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत, बार-बार फेफड़ों का संक्रमण और पाचन संबंधी समस्याएं होती हैं। बच्चों में यह बीमारी कम वजन, विकास में रुकावट और बार-बार अस्पताल जाने की स्थिति पैदा करती है। बिना इलाज के यह बीमारी फेफड़ों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकती है।
बीमारी की पहचान
अब तक भारत में इसका प्रमुख निदान टेस्ट — स्वेट क्लोराइड टेस्ट — व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं था। हर 10,000 से 40,000 नवजातों में एक को यह बीमारी हो सकती है, लेकिन कम जागरूकता और जांच की कमी के कारण असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हो सकते हैं। हालांकि, समय पर पहचान और सही इलाज से बच्चों का जीवन और उसकी गुणवत्ता बेहतर की जा सकती है।
भारत में उपलब्ध नहीं है यह दवा
पेटेंट प्रतिबंधों के कारण Trikafta भारत में उपलब्ध नहीं है और इसे विदेश से आयात करना पड़ता है। विकसित देशों के बच्चों को यह दवा पिछले लगभग आठ वर्षों से मिल रही है। इस बीच, कर्नाटक, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों में माता-पिता कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं ताकि अनिवार्य लाइसेंसिंग जैसे उपायों के जरिए इस दवा को सुलभ बनाया जा सके।
एक डॉक्टर ने दुख जताते हुए कहा, “विडंबना यह है कि इस चमत्कारी दवा के लिए जरूरी एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (API) भारत में ही बनते हैं, फिर भी हमारे बच्चे इससे वंचित हैं।”