रक्षा जैन: अपना 160 लीटर ब्रेस्ट मिल्क दान कर 5000 नवजातों को जीवनदान देने वाली माँ

इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज रक्षा जैन ने 160.81 लीटर अपना दूध दान कर 5,000 से अधिक जरूरतमंद बच्चों को जीवनदान दिया है। अपने इस अद्वितीय कार्य से उन्होंने उन नवजातों को स्तनपान कराया जिन्हें किसी कारणवश अपनी जैविक मां का दूध नहीं मिल सका।

राजस्थान के भीलवाड़ा जैसे व्यस्त शहर में रक्षा जैन ने एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया है जो सामान्य उपलब्धियों से कहीं आगे है। उन्होंने अनगिनत नवजात शिशुओं को अपने स्तनपान से जीवन की अनमोल शुरुआत दी है। उनके इस अद्वितीय योगदान के लिए उनकी तुलना यशोदा और पन्ना धाय जैसी ऐतिहासिक मातृशक्तियों से की जाती है। उनका नाम अब “इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स” में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया है।

रक्षा पेशे से एक इलेक्ट्रोथेरेपिस्ट हैं और दो बच्चों की मां हैं। उन्होंने सिर्फ भीलवाड़ा ही नहीं, आसपास के शहरों के हजारों बच्चों के लिए भी उम्मीद की किरण बनकर मिसाल कायम की है। अपने पहले प्रसव के बाद उन्होंने जून 2018 से 2019 तक “अंचल मदर मिल्क बैंक” को 54 लीटर दूध दान किया। दूसरे प्रसव के बाद 15 फरवरी से 14 नवंबर 2023 के बीच उन्होंने 106.81 लीटर दूध और दान किया। इस तरह उनका कुल योगदान 160.81 लीटर रहा, जिससे 5,000 से अधिक दूध फीड्स उपलब्ध कराई गईं।

करुणा से शुरू हुई यह प्रेरणादायक यात्रा

रक्षा की यह प्रेरणादायक यात्रा ज़रूरत और करुणा दोनों से शुरू हुई थी। 17 जून 2018 को बेटे के जन्म के बाद, उन्हें शुरू के तीन दिन तक दूध नहीं उतरने की परेशानी हुई। यह स्थिति उनके परिवार के लिए बेहद चिंताजनक थी। इसी दौरान उन्हें महात्मा गांधी अस्पताल स्थित अंचल मदर मिल्क बैंक से सहायता मिली। वहां से मिले दूध से उनके नवजात को सहारा मिला। इससे प्रेरित होकर रक्षा ने संकल्प लिया कि वे भी दूसरों के बच्चों की मदद करेंगी।

रक्षा कहती हैं, “जब मेरा दूध नहीं उतर रहा था, तो पूरा परिवार बहुत परेशान हो गया था। ऐसा अनुभव पहले कभी नहीं हुआ था। अंचल मदर मिल्क बैंक से मिले दूध ने मेरे बच्चे की जान बचाई। जब मुझे पता चला कि किसी और मां के दान से मेरे बच्चे को जीवन मिला, तो मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि मुझे इतना दूध देना कि मैं भी दूसरे बच्चों की मदद कर सकूं।”

उसकी दुआएं रंग लाईं। रक्षा का दूध प्रचुर मात्रा में बनने लगा, जिसे उसने व्यर्थ जाने देने के बजाय दान करने का फैसला किया। दूध सुखाने के लिए दवा लेने की सलाह के बावजूद, रक्षा ने शारीरिक तकलीफ सहने और दूध दान जारी रखने का निर्णय लिया।

“दूध दान करना सुनने में नेक काम लगता है, लेकिन यह बहुत दर्दनाक था। मेरे स्तन सख्त हो जाते थे और मुझे नियमित रूप से दूध निकालना पड़ता था। लेकिन मैंने सोचा, अगर किसी और मां के दूध ने मेरे बच्चे की जान बचाई थी, तो क्यों न मैं भी जरूरतमंद बच्चों को अपना दूध दूं?”

बच्चों की मदद का संतोष दिल को छू जाता था

रक्षा ने 20 जून 2018 से नियमित रूप से दूध दान करना शुरू किया। वह एक बार में एक लीटर तक दूध दान करती थीं। मदर मिल्क बैंक के रिकॉर्ड में उनकी हर एक दान की गई मात्रा का विस्तृत लेखा-जोखा मौजूद है। अपने बच्चे को दूध पिलाने के बाद वह रोज बैंक जाती थीं, और अनगिनत बच्चों की मदद करने का संतोष उन्हें भीतर तक भर देता था।

पहले प्रसव के दौरान, रक्षा अपने ससुराल मंडल कस्बे में थीं और रोज दूध दान के लिए भीलवाड़ा जाती थीं। “भीलवाड़ा आने-जाने का टैक्सी किराया 700 रुपये पड़ता था, लेकिन मैंने लगातार 25 दिन तक दूध दान के लिए यह यात्रा की।” जब रोज़ाना टैक्सी का खर्च ज्यादा होने लगा, तो रक्षा ने तय किया कि वह स्कूटी से भीलवाड़ा जाएंगी। उन्होंने अपने एक महीने के बच्चे के लिए एक कैरीकोट खरीदी, और उसे छाती से बांधकर स्कूटी से मदर मिल्क बैंक जाने लगीं।

मां का दूध दान करना एक दुर्लभ अवसर

उन्हें एक भावुक पल आज भी याद है, जब अस्पताल के कर्मचारियों ने एक बच्ची को उनकी बेटी कहकर पुकारा, क्योंकि उस बच्ची की मां की डिलीवरी के दौरान मृत्यु हो गई थी और वह जन्म से ही रक्षा के दूध पर जीवित थी।

“मैंने उस बच्ची को गोद में लिया और ऐसा महसूस हुआ जैसे वह मेरी ही बेटी हो। आप जीवन भर रक्तदान कर सकते हैं, लेकिन मां का दूध दान करने का मौका बहुत दुर्लभ होता है।”

रक्षा का दूसरा बच्चा 12 फरवरी 2023 को पैदा हुआ। उन्होंने प्रसव के सिर्फ तीन दिन बाद ही फिर से दूध दान शुरू कर दिया और यह सिलसिला 14 नवंबर 2023 तक लगातार चलता रहा। शारीरिक चुनौतियों और थकान के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी क्योंकि उनका मानना था कि जरूरतमंदों की मदद करना उनका कर्तव्य है।

रक्षा की कहानी मातृत्व प्रेम की शक्ति और निस्वार्थता की मिसाल है। वे राजस्थान की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की सबसे बड़ी मिल्क डोनर बन चुकी हैं। उनके द्वारा दान किया गया दूध न सिर्फ भीलवाड़ा बल्कि अजमेर जैसे आसपास के जिलों के बच्चों के लिए भी जीवनदायक बना।

परिवार का सहयोग जरूरी

रक्षा बताती हैं कि दूध दान एक सरल प्रक्रिया है, लेकिन इसके लिए परिवार का सहयोग बहुत जरूरी होता है। उनके पति सुनील, मां शारदा देवी और भाई राहुल सोनी इस यात्रा में उनके सबसे बड़े सहायक रहे। उनके भाई उन्हें अस्पताल छोड़ने ले जाते थे और मां घर की जिम्मेदारियां संभालती थीं।

रक्षा की प्रेरणादायक कहानी मां के दूध के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाती है। वे महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों से भी अपील करती हैं कि इस नेक कार्य में योगदान दें, क्योंकि यह सिर्फ महिला की नहीं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी है।

“मैंने अब तक 160.81 लीटर दूध दान किया है, फिर भी मेरी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं और खुद को हजारों बच्चों की मां मानती हूं जिन्हें मेरा दूध मिला।”

रक्षा ने यह महसूस किया कि इस कार्य को और आगे बढ़ाया जाना चाहिए, इसलिए उन्होंने विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर ‘लाइफ वेलफेयर सोसाइटी पिंक स्क्वाड’ की शुरुआत की। शुरू में महिलाएं इसमें जुड़ने से झिझक रही थीं, लेकिन धीरे-धीरे यह अभियान रफ्तार पकड़ने लगा। अब 20 महिलाओं की एक टीम तैयार हो चुकी है, जो नवजातों को कुपोषण से बचाने के इस आंदोलन को आगे बढ़ा रही है।

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