शिक्षा का स्तर बढ़ने के बावजूद, फर्टिलिटी हेल्थ को लेकर जागरूकता बहुत कम है। सर्वे के मुताबिक, 23-30 वर्ष की महिलाएं अभी भी महत्वपूर्ण प्रजनन संबंधी जानकारी के लिए अविश्वसनीय स्रोतों पर निर्भर हैं।
मुंबई: एक सर्वे के अनुसार, 50% से ज़्यादा जेन-ज़ी (Gen Z) महिलाएं अपनी रूटीन हेल्थ चेक-अप में फर्टिलिटी टेस्ट को शामिल करना चाहती हैं। जेन-ज़ी (Generation Z) उन लोगों को कहा जाता है जो 1997 से 2012 के बीच पैदा हुए हैं।
बेंगलुरु स्थित Motherhood Hospitals और पुणे स्थित Nova IVF Fertility ने देशभर के 200 से अधिक महिलाओं (उम्र 23–30 वर्ष) पर यह सर्वे किया, जिसमें मेट्रो और टियर-1 शहरों की पेशेवर महिलाओं की राय शामिल थी। यह सर्वे बताता है कि युवा महिलाएं फर्टिलिटी, टाइमलाइन और प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर क्या सोच रखती हैं।
जैसे वे अपनी फाइनेंशियल हेल्थ पर ध्यान देती हैं, वैसे ही अब कई जेन-ज़ी महिलाएं पैरेंटहुड को भी प्लान करके अपनाना चाहती हैं। सर्वे में पाया गया कि 40% महिलाएं 28 से 32 साल की उम्र में गर्भधारण की कोशिश करना चाहती हैं।
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करीब 25% महिलाएं ज़्यादातर फर्टिलिटी टाइमलाइन और प्रेग्नेंसी से जुड़े सवाल पूछती हैं, जिससे पता चलता है कि उम्र को लेकर चिंता प्रमुख है।
PCOS और मोटापे में वृद्धि
सर्वे के अनुसार, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) और मोटापे के मामले बढ़ रहे हैं, साथ ही देर से शादी और पेरेंटहुड का चलन भी बढ़ रहा है। डॉ. शर्वरी मुंधे, कंसल्टेंट फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल्स बेंगलुरु कहती है, “यह सर्वे बताता है कि 20% महिलाएं पीसीओएस, थायरॉयड और एंडोमीट्रियोसिस जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं, लेकिन फिर भी वे मेडिकल मदद लेने में गंभीर नहीं हैं।”
उन्होंने कहा, “फर्टिलिटी हेल्थ में लाइफस्टाइल उतना ही अहम है जितना हार्ट हेल्थ में। यह सिर्फ जंक फूड, शराब या स्मोकिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि फैड डाइट्स और बिना डॉक्टर की सलाह के सप्लीमेंट्स लेने से भी जुड़ा हुआ है।”
जानकारी के लिए 40% महिलाएं सोशल मीडिया पर निर्भर
शिक्षा का स्तर बढ़ने के बावजूद, भारतीय युवतियों में फर्टिलिटी हेल्थ को लेकर जागरूकता अभी भी बहुत कम है। सर्वे के मुताबिक, 23-30 वर्ष की महिलाएं अभी भी महत्वपूर्ण प्रजनन संबंधी जानकारी के लिए अविश्वसनीय स्रोतों पर निर्भर हैं।
- 41% महिलाएं फर्टिलिटी की जानकारी के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर हैं।
- 23% दोस्त, 14% परिवार और 12% टीवी/फिल्मों से जानकारी लेती हैं।
- 51% महिलाएं एंटी-म्यूलरियन हार्मोन (AMH) लेवल के बारे में नहीं जानतीं, जो फर्टिलिटी का अहम पैमाना है।
- सिर्फ 18% ने कभी अपना AMH टेस्ट कराया है।
- 56% ने एग फ्रीजिंग के बारे में सुना, लेकिन जानकारी अधूरी थी।
- 40% महिलाएं 28–32 साल के बीच मां बनने की योजना बनाती हैं, जबकि 29% 33–36 साल के बीच।
डॉ. मुंधे का कहना है, “फर्टिलिटी अवेयरनेस को प्रिवेंटिव केयर की तरह अपनाने की ज़रूरत है। एग फ्रीजिंग एक विकल्प हो सकता है, लेकिन कब और क्यों इसे अपनाना चाहिए, इसकी जागरूकता अभी भी कम है।”
फर्टिलिटी लिटरेसी बेहद कम
एम्स दिल्ली के एक सर्वे (205 महिलाएं, उम्र 20–30 साल) के नतीजे चौंकाने वाले रहे—
- 85% को मासिक धर्म चक्र में ओवुलेटरी पीरियड के बारे में जानकारी नहीं थी।
- सिर्फ 8% ने माना कि 35 साल के बाद की उम्र बांझपन का बड़ा जोखिम है।
- 50% ने समझा कि बढ़ती उम्र में असिस्टेड फर्टिलिटी ट्रीटमेंट या डोनर एग्स की ज़रूरत पड़ सकती है।
- 97% महिलाओं ने गलत तरीके से मान लिया कि कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स से बांझपन हो सकता है।
डॉ. रश्मि निफडकर, फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी कहती है—
“धीरे-धीरे उम्र और फर्टिलिटी को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि भारतीय महिलाओं के ओवरीज़, कॉकसियन महिलाओं की तुलना में छह साल तेज़ उम्रदराज़ होती हैं। 20s के आखिर और 30s की शुरुआत में ही AMH लेवल घटने लगता है।”
उन्होंने कहा कि फर्टिलिटी में गिरावट धीरे-धीरे होती है, लेकिन 35 के बाद इसमें गिरावट तेज़ हो जाती है। अगर महिलाएं फर्टिलिटी टेस्ट को रूटीन हेल्थ चेक-अप का हिस्सा बना लें तो वे अपने भविष्य के प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर सही फैसले ले सकती हैं।