इंदौर ज़िले के महाराजा तुकोजी राव अस्पताल (MTH) में एक दुर्लभ और जटिल चिकित्सकीय मामला सामने आया, जब एक महिला ने सिर से जुड़े जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। नवजात शिशु का शरीर एक है, लेकिन उसके दो सिर हैं। चिकित्सीय भाषा में इस स्थिति को पैरेपैगस डायसेफैलिक (Parapagus Dicephalic) कहा जाता है, जो अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है।
नवजात के पास दो सिर, दो जिगर (लीवर), दो फेफड़े (लंग्स) हैं, लेकिन केवल एक कार्यशील हृदय है। 2.8 किलोग्राम वजन वाले इस बच्चे को फिलहाल अस्पताल की स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में गहन निगरानी में रखा गया है।

ऐसे मामले हर दो लाख जन्मों में से केवल एक या दो में ही सामने आते हैं और अक्सर ऐसे नवजात शिशुओं की मृत्यु कुछ ही घंटों या दिनों में हो जाती है। मेडिकल टीम अब शिशु की स्थिति को देखते हुए संभावित सर्जरी विकल्पों पर विचार कर रही है।
जटिल डिलीवरी और गर्भावस्था में Sonography में असामान्यता का पता न लगना
मां, जो देवास की निवासी हैं, को प्रसव पीड़ा होने पर MTH लाया गया, जहां उनका इमरजेंसी सी-सेक्शन (C-section) किया गया। गर्भावस्था के दौरान की गई सोनोग्राफी रिपोर्ट्स में यह एक सामान्य जुड़वां गर्भावस्था प्रतीत हो रही थी। लेकिन असली सच्चाई तो डिलीवरी के समय सामने आई, जिससे डॉक्टर और परिजन दोनों ही चकित रह गए।
अब यह सवाल उठ रहा है कि गर्भावस्था के दौरान की गई जांचों में इस गंभीर असामान्यता का पता क्यों नहीं चल पाया। परिजन को पूरे समय यही लग रहा था कि वे सामान्य जुड़वां बच्चों की उम्मीद कर रहे हैं।
मामला बेहद जटिल
उपचार कर रही डॉक्टर प्रीति मालपानी ने बताया,
“इस शिशु के पास एक शरीर है, दो सिर हैं, दो लीवर हैं, लेकिन केवल एक हृदय है—वो भी विकृत है—और केवल एक जोड़ी फेफड़े हैं। दो में से एक हृदय बहुत ही अविकसित है, जबकि जो कार्यशील हृदय है, उस पर दोनों मस्तिष्कों को रक्त पहुंचाने का अत्यधिक दबाव है।”
शिशु को सांस लेने में दिक्कत और गुर्दों (किडनी) से जुड़ी समस्याएं भी हैं। हालांकि शिशु को दूध पिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, लेकिन हृदय संबंधी जटिलताएं ही सबसे बड़ा खतरा बनी हुई हैं।
डॉ. मालपानी ने कहा,
“इस शिशु के जीवित रहने की संभावना 0.1% से भी कम है।”
“और अगर बच्चा जीवित भी रहता है, तो आगे का जीवन असाधारण रूप से कठिन होगा—बच्चे और परिवार दोनों के लिए।”
बच्चे का भविष्य और भावनात्मक संकट
शिशु के माता-पिता मानसिक रूप से बहुत आहत हैं और बोलने की स्थिति में नहीं हैं। मां अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं, और छह विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम शिशु की 24 घंटे निगरानी कर रही है।
यदि बच्चा जीवित रहता है, तो उसका जीवन बेहद सीमित होगा और उसे निरंतर चिकित्सा सहयोग की आवश्यकता होगी, जिससे परिवार पर भारी बोझ पड़ेगा।
फिलहाल, डॉक्टरों की प्राथमिकता यही है कि शिशु को सर्वोत्तम देखभाल और इलाज मिले, और उसकी हालत पर लगातार नजर रखी जा रही है।